By an unknown poet. 

A hindi poem. 

एक बार इस कविता को दिल से पढ़िये शब्द-शब्द में गहराई है…

⛺जब आंख खुली तो अम्‍मा की

⛺गोदी का एक सहारा था

⛺उसका नन्‍हा सा आंचल मुझको

⛺भूमण्‍डल से प्‍यारा था
🌹उसके चेहरे की झलक देख

🌹चेहरा फूलों सा खिलता था

🌹उसके प्यार की एक बूंद से

🌹मुझको जीवन मिलता था
हाथों से बालों को नोंचा

पैरों से खूब प्रहार किया

फिर भी उस मां ने पुचकारा

हमको जी भर के प्‍यार किया
🌹मैं उसका राजा बेटा था

🌹वो आंख का तारा कहती थी

🌹मैं बनूं बुढापे में उसका

🌹बस एक सहारा कहती थी
🌂उंगली को पकड़ चलाया था

🌂पढने विद्यालय भेजा था

🌂मेरी नादानी को भी निज

🌂अन्‍तर में सदा सहेजा था
🌹मेरे सारे प्रश्‍नों का वो

🌹फौरन जवाब बन जाती थी

🌹मेरी राहों के कांटे चुन

🌹वो खुद गुलाब बन जाती थी
👓मैं बडा हुआ तो कॉलेज से

👓इक रोग प्‍यार का ले आया

👓जिस दिल में मां की मूरत थी

👓वो रामकली को दे आया
🌹शादी की पति से बाप बना

🌹अपने रिश्‍तों में झूल गया

🌹अब करवाचौथ मनाता हूं

🌹मां की ममता को भूल गया
☝हम भूल गये उसकी ममता

☝मेरे जीवन की थाती थी

☝हम भूल गये अपना जीवन

☝वो अमृत वाली छाती थी
🌹हम भूल गये वो खुद भूखी

🌹रह करके हमें खिलाती थी

🌹हमको सूखा बिस्‍तर देकर

🌹खुद गीले में सो जाती थी
💻हम भूल गये उसने ही

💻होठों को भाषा सिखलायी थी

💻मेरी नीदों के लिए रात भर

💻उसने लोरी गायी थी
🌹हम भूल गये हर गलती पर

🌹उसने डांटा समझाया था

🌹बच जाऊं बुरी नजर से

🌹काला टीका सदा लगाया था
🏯हम बड़े हुए तो ममता वाले

🏯सारे बन्‍धन तोड़ आए

🏯बंगले में कुत्‍ते पाल लिए

🏯मां को वृद्धाश्रम छोड आए
🌹उसके सपनों का महल गिरा कर

🌹कंकड़-कंकड़ बीन लिए

🌹खुदग़र्जी में उसके सुहाग के

🌹आभूषण तक छीन लिए
👑हम मां को घर के बंटवारे की

👑अभिलाषा तक ले आए

👑उसको पावन मंदिर से

👑गाली की भाषा तक ले आए
🌹मां की ममता को देख मौत भी

🌹आगे से हट जाती है

🌹गर मां अपमानित होती

🌹धरती की छाती फट जाती है
💧घर को पूरा जीवन देकर

💧बेचारी मां क्‍या पाती है

💧रूखा सूखा खा लेती है

💧पानी पीकर सो जाती है
🌹जो मां जैसी देवी घर के

🌹मंदिर में नहीं रख सकते हैं

🌹वो लाखों पुण्‍य भले कर लें

🌹इंसान नहीं बन सकते हैं
✋मां जिसको भी जल दे दे

✋वो पौधा संदल बन जाता है

✋मां के चरणों को छूकर पानी

✋गंगाजल बन जाता है
🌹मां के आंचल ने युगों-युगों से

🌹भगवानों को पाला है

🌹मां के चरणों में जन्‍नत है

🌹गिरिजाघर और शिवाला है

🌹हर घर में मां की इज्जत हो

🌹ऐसा संकल्‍प उठाता हूं

🌹मैं दुनियां की हर मां के

🌹आगे में ये शीश झुकाता हूं…
Written by 

Unknown poet, but I really liked it. 

I received this on my what’s app. 

Published by AQUIB

the unsung poet..

20 thoughts on “By an unknown poet. 

  1. बहुत ही सुंदर कविता है मैंने भी व्हाट्सप्प पर पढ़ा था. पुनः पढ़ने का अवसर प्रदान करने के लिए धन्यवाद.

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